Aadmi Ka Man Bada Beiman Hai - Osho

आदमी का मन बडा बेईमान है - ओशो 
Aadmi Ka Man Bada Beiman Hai - Osho

मुल्ला नसरुद्दीन मस्जिद जाता है। मस्जिद के मौलवी को उसने कहा कि सुबह आने की बड़ी मुश्किल होती है, तय ही नहीं कर पाता, तय ही करने में समय निकल जाता है, कि जाऊँ कि न जाऊँ, जाऊँ कि न जाऊँ; मन में बड़ी दुविधा रहती है, अब आप तो जानते ही हैं। मन दुविधाग्रस्त है मेरा। मौलवी ने कहा—तू एक काम कर, परमात्मा पर छोड़ दे। उसने कहा—यह कैसे तय होगा और पक्का कैसे पता चलेगा कि परमात्मा की मर्जी क्या है? मुल्ला थोड़ा डरा भी, क्योंकि परमात्मा की मर्जी तो निश्चित ही यह होगी कि मस्जिद जाओ। मगर उसने कहा कि पक्का कैसे चलेगा कि परमात्मा की मर्जी क्या है? तो मौलवी ने कहा—तू ऐसा काम कर, एक रुपया रख ले और कहा कि अगर चित गिरे तो परमात्मा चाहता है मस्जिद जाओ, और अगर पुत गिरे तो परमात्मा चाहता है कि मस्जिद मत जाओ।
दूसरे दिन मुल्ला नहीं आया। रास्ते में बाजार में मौलवी को मिला, मौलवी ने पूछा—आए नहीं, भाई? उसने कहा कि आपने कहा था, वही किया।
मौलवी ने कहा तो क्या हुआ? पुत गिरा रुपया?
उसने कहा कि पहली बार में तो नहीं गिरा। सत्रह बार फेंकना पड़ा, तब पुत गिरा। मगर गिरा। जब पुत गिरा तब फिर मैं निश्चिंत सो गया; मैंने कहा कि अब जब परमात्मा की ही मर्जी है! ”
आदमी बहुत बेईमान है। अपनी मर्जी को परमात्मा पर भी थोपने की चेष्टा करता है। वहीं से उसके सारे कष्टों का जन्मस्रोत है।

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