Samyak shram osho

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*सम्यक श्रम*

Samyak shram osho



सम्यक श्रम भी मनुष्य की चेतना और ऊर्जा को जगाने के लिए अनिवार्य हिस्सा है।


अब्राहम लिंकन एक दिन सुबह-सुबह अपने घर बैठा अपने जूतों पर पॉलिश करता था। उसका एक मित्र आया और उस मित्र ने कहा: लिंकन, यह क्या करते हो? तुम खुद ही अपने जूतों पर पॉलिश करते हो?


लिंकन ने कहा: तुमने मुझे हैरानी में डाल दिया। तुम क्या दूसरों के जूतों पर पॉलिश करते हो? मैं अपने ही जूतों पर पॉलिश कर रहा हूं। तुम क्या दूसरों के जूतों पर पॉलिश करते हो?


उसने कहा कि नहीं-नहीं, मैं तो दूसरों से करवाता हूं।


लिंकन ने कहा: दूसरों के जूतों पर पॉलिश करने से भी बुरी बात यह है कि तुम किसी आदमी से जूते पर पॉलिश करवाओ।


इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है कि जीवन से सीधे संबंध हम खो रहे हैं। जीवन के साथ हमारे सीधे संबंध श्रम के संबंध हैं। प्रकृति के साथ हमारे सीधे संबंध हमारे श्रम के संबंध हैं।


कनफ्यूशियस के जमाने में--कोई तीन हजार वर्ष पहले--कनफ्यूशियस एक गांव में घूमने गया था। उसने एक बगीचे में एक माली को देखा। एक बूढ़ा माली कुएं से पानी खींच रहा है। बूढ़े माली का कुएं से पानी खींचना बड़ा कष्टपूर्ण है। वह बुड्ढा लगा हुआ है पानी को...जहां बैल लगाए जाते हैं, वहां बुड्ढा लगा हुआ है और उसका जवान लड़का लगा हुआ है। वे दोनों पानी खींच रहे हैं! वह बूढ़ा बहुत बूढ़ा है।


कनफ्यूशियस को खयाल हुआ कि क्या इस बूढ़े को अब तक पता नहीं है कि बैलों या घोड़ों से पानी खींचा जाने लगा है। यह खुद ही लगा हुआ खींच रहा है। यह कहां के पुराने ढंग को अख्तियार किए हुए है।


तो वह बूढ़े आदमी के पास कनफ्यूशियस गया और उससे बोला कि मेरे मित्र! क्या तुम्हें पता नहीं है, नई ईजाद हो गई है। लोग घोड़े और बैलों को जोत कर पानी खींचते हैं, तुम खुद लगे हुए हो?


उस बूढ़े ने कहा: धीरे बोलो, धीरे बोलो! क्योंकि मुझे तो कुछ खतरा नहीं है, लेकिन मेरा जवान लड़का न सुन ले।


कनफ्यूशियस ने कहा: तुम्हारा मतलब?


उस बूढ़े ने कहा: मुझे सब ईजाद पता है, लेकिन सब ईजाद आदमी को श्रम से दूर करने वाली है। और मैं नहीं चाहता कि मेरा लड़का श्रम से दूर हो जाए। क्योंकि जिस दिन वह श्रम से दूर होगा, उसी दिन जीवन से भी दूर हो जाएगा।


जीवन और श्रम समानार्थक हैं। जीवन और श्रम एक ही अर्थ रखते हैं। लेकिन धीरे-धीरे हम उनको धन्यभागी कहने लगे हैं, जिनको श्रम नहीं करना पड़ता है और उनको अभागे कहने लगे हैं, जिनको श्रम करना पड़ता है! और यह हुआ भी। एक अर्थ में बहुत से लोगों ने श्रम करना छोड़ दिया, तो कुछ लोगों पर बहुत श्रम पड़ गया। बहुत श्रम प्राण ले लेता है, कम श्रम भी प्राण ले लेता है।


इसलिए मैंने कहा: सम्यक श्रम। श्रम का ठीक-ठीक विभाजन। हर आदमी के हाथ में श्रम होना चाहिए। और जितनी तीव्रता से और जितने आनंद से और जितने अहोभाव से कोई आदमी श्रम के जीवन में प्रवृत्त होगा, उतना ही पाएगा कि उसकी जीवन-धारा मस्तिष्क से उतर कर नाभि के करीब आनी शुरू हो गई है। क्योंकि श्रम के लिए मस्तिष्क की कोई जरूरत नहीं होती। श्रम के लिए हृदय की भी कोई जरूरत नहीं होती। श्रम तो सीधा नाभि से ही ऊर्जा को ग्रहण करता है और निकलता है।


थोड़ा श्रम, ठीक आहार के साथ-साथ थोड़ा श्रम अत्यंत आवश्यक है। और यह इसलिए नहीं कि यह किसी और के हित में है कि आप गरीब की सेवा करें तो यह गरीब के हित में है, कि आप जाकर गांव में खेती-बाड़ी करें, तो यह किसानों के हित में है, कि आप कोई श्रम करेंगे, तो बहुत बड़ी समाज-सेवा कर रहे हैं। 


झूठी हैं ये बातें। यह आपके हित में है और किसी के हित में नहीं है। किसी और के हित का इससे कोई संबंध नहीं है। किसी और का हित इससे हो जाए, वह बिलकुल दूसरी बात है, लेकिन यह आपके हित में है।


- ओशो, 

अंतर्यात्रा (ध्‍यान शिविर) प्रवचन-3

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