ऊब क्या है? - ओशो

 ऊब क्या है? - ओशो

ऊब क्या है? - ओशो


एक राजा हुआ, बिलकुल ही काल्पनिक कहानी है, उसने सारे देश जीत लिए, पृथ्वी पर जो भी था, सबका मालिक हो गया। और सब जीत कर भी उसने पाया कि मैं तो खाली का खाली हूं, जिस दिन विजय की यह यात्रा शुरु की थी, उस दिन जितना दरिद्र था, उतना ही दरिद्र आज भी हूं। पास में ही उसके भवन के, झोपड़े में एक फकीर रहता था। उसने उस फकीर को बुलवाया और पूछा कि तुम तो दरिद्र हो और तुम्हारे पास कुछ भी नहीं, फिर भी सुबह सांझ तुम्हें गीत गाते देखता हूं; और सब है मेरे पास, और जो भी उपलब्ध किया जा सकता था, सब मैंने पा लिया लेकिन मेरे जीवन में तो दुख और उदासी के सिवाय कुछ भी नहीं है। तुम्हारे इस गीत का रहस्य क्या है? फकीर इसके पहले कि कुछ बोलता, उसके शिष्य भी उसके साथ आए थे और उन्होंने कहा, हमारे गुरु ने अमरता उपलब्ध कर ली है। और जो अमरता को उपलब्ध कर लेता है, वह फिर दुख के बाहर हो जाता है।


राजा नीचे उतरा और उस फकीर के चरणों को पकड़ लिया, और उसने कहाः किसी भांति मुझे भी अमरता मिल जाए, मैं भी अमरत्व को उपलब्ध हो जाऊं। फकीर बोलाः बहुत ही सरल बात है, व्यर्थ ही तुमने दौड़-धूप की, इतने राज्य जीते, यहीं पास ही में पहाड़ी के पास एक झरना है और उस झरने का पानी जो भी पी लेता है, वह अमर हो जाता है। तो तुम जाओ और उस झरने का पानी पी लो। अकेले जाना, और कोई कितना ही रोके रुकना मत, क्योंकि जो रुक जाता है, फिर पी नहीं पाता। अकेले जाना किसी को साथ मत ले जाना और वहां अगर कोई रोके तो रुकना मत, तुम पी ही लेना। राजा और क्या चाहता था, आपको भी कोई बताने वाला मिल जाए, तो और क्या चाहेंगे? और फिर पास ही झरना था, पहाड़ी करीब थी। उस राजा ने कहा कोई कितना ही रोके, मैं क्यों रुकूंगा।


राजा गया पहाड़ी के इस पार ही उसने अपने साथी छोड़ दिए, वह अकेला ही पैदल उतरा और पहाड़ी के झरने के पास पहुंचा, जैसे ही वह झरने में हाथ डालने को था, कि पीछे से अनेक लोग चिल्लाए कि रुक जाओ, अन्यथा मुश्किल में पड़ जाओगे। एक क्षण ऐसा लगा कि इसमें रुकने की क्या बात है? लेकिन पीछे से आवाजें आईं कि इतनी जल्दी भी क्या है, एक क्षण हमारी बात सुन लो, फिर पी लेना। और उसने देखा कि पीछे तो बहुत से वृद्ध और बहुत कुरूप वहां तो जंगल उनसे ही भरा है, उसने पूछा यह बात क्या है? उन्होंने कहा हम सब इसी झरने का पानी पीकर भूल में पड़ गए, अब मरना मुश्किल हो गया है। अब हम मरना चाहते हैं, और मरने का रास्ता नहीं है। और हमें हजारों वर्ष हो गए हैं, हम बूढ़े हो गए हैं, हाथ-पैर कमजोर हो गए हैं, आंखों में दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन मर नहीं सकते, पहाड़ पर से गिर पड़ते हैं, हाथ-पैर टूट जाते हैं, लेकिन मौत नहीं आती। जहर खा लेते हैं, सुस्त हो जाते हैं, लेकिन मौत नहीं आती। कोई उपाय करें हम मर नहीं पाते, रुक जाओ, थोड़ा समझो हमारी बड़ी दुर्गति हो गई है। फिर तुम्हें पीना हो तो तुम पी लो। एक क्षण खड़े होकर उसने सोचा कि यह तो सच में विचारणीय था। अमर होकर फिर क्या करेंगे? और उन बूढ़ों ने कहा हम बहुत मुश्किल में पड़ गए, पहले सोचा था अमर हो जाएंगे, अब रोज-रोज वही दोहर रहा है, वही दोहर रहा है, वही दोहर रहा है; हम घबरा गए हैं और मरना चाहते हैं। परमात्मा की बड़ी कृपा है कि लोग मर जाते हैं, और हम अपने हाथ से अभागे हो गए हैं।


राजा वापस लौट आया। आप में से भी कोई होता, मैं समझता हूं वापस ही लौट आता। फकीर ने पूछा कैसे वापस लौट आए? उसने कहा यह तो बड़ा कठिन है। बूढ़े हो जाएंगे, दुर्बल हो जाएंगे, इंद्रियां शिथिल हो जाएंगी, और मरेंगे नहीं, फिर तो बड़ी कठिनाई होगी। तो उस फकीर ने कहा इसमें भी क्या बात है? तुम्हारे भवन के दूसरी तरफ जो पहाड़ी है, वहां ऐसे फल हैं, कि उन्हें कोई खा ले तो फिर कभी कोई बूढ़ा नहीं होता। तुम उन फलों को खा लो और सदा के लिए चिर-युवा हो जाओ। और फिर जाकर वह पानी पी लेना तो कभी नहीं मरोगे। उसने कहाः यह बात तो समझ में आती है। लेकिन उसने कहाः अकेले वहां जाना और कोई कितना ही रोके, रुकना मत। वह वहां भी गया और वही हुआ। जैसे ही वह फल तोड़ने को था, चारों तरफ से आवाजें आई कि ठहर जाओ, फिर बहुत पछताओगे। बहुत लोग थे जो जवान थे। लेकिन जवानी से ऊब गए थे, कितनी देर जवान रहा जा सकता है? कितने वर्ष? कितनी देर तक जवानी और जवानी के सुख अर्थ रख सकते हैं? उन्होंने कहाः हम बहुत मुश्किल में पड़ गए हैं, बुढ़ापा आता नहीं। ऊब गए हैं, वही-वही दोहरता है, वही-वही दोहरता है, सैकड़ों वर्ष हो गए हैं, वही-वही दोहराते, अब सब सुख दुख हो गए हैं। एक ही सुख बार-बार पुनुरुक्त हो तो व्यर्थ हो जाता है। सुख में तो रस है, जब वह नया हो, नवीन हो। और जब बार-बार वही पुनुरुक्त हो तो व्यर्थ हो जाता है। इसीलिए सब सुखों से आदमी ऊब जाता है, कोई सुख मनुष्य को सदा सुखी नहीं कर सकता। सुख तो ऊबा देगा, क्योंकि वह दोहरेगा, दोहरेगा और जितना दोहरता जाएगा, उतना ही व्यर्थ होता जाएगा।


जिसको आपने पहले दिन प्रेम किया हो, दूसरे दिन उतना प्रेम आप नहीं कर पाते। तीसरे दिन और भी कम, चौथे दिन बात हवा हो जाती है। जिस भवन में आप गए हों, नये-नये, बड़ी खुशी से गए होंगे, थोड़े दिन बाद भवन पुराना पड़ जाता है, और मन नये भवनों में जाने के लिए उत्सुक हो जाता है। जिस धन को आपने पाया हो, पाकर प्रसन्न हुए हों, थोड़े दिन बाद व्यर्थ हो जाता है, क्योंकि वही धन काफी नहीं है। मनुष्य का मन नये से नया चाहता है।


उन युवकों ने कहाः चिर-युवकों ने कि हम बहुत मुश्किल में पड़ गए हैं, सब दोहर रहा है और हम घबरा गए हैं। परमात्मा किसी भांति हमें बूढ़ा कर दे। राजा वापस लौट आया, उसने फकीर से कहा कि बड़ा कठिन है।


यह कहानी बड़ी अर्थपूर्ण है। यह मैंने आपसे क्यों कही? यह मैंने क्यों कहना चाही आपसे? यह मैंने इसलिए कहना चाही कि कुछ चीजें छोटे में ठीक से दिखाई नहीं पड़ती हैं, जब उन्हें बड़ा करके देखें तब ही दिखाई पड़ती हैं। मैग्निफाइन ग्लास न हो कोई खुर्दबीन न हो तो बहुत सी चीजें दिखाई ही नहीं पड़तीं। हमारी जिंदगी इतनी थोड़ी है, जवानी इतने थोड़े दिन टिकती है, जीवन इतना छोटा है कि हमें उसकी व्यर्थता दिखाई नहीं पड़ती। उसे थोड़ा मैग्निफाई करें। जिस जिंदगी को आप जी रहे हैं सुबह से सांझ तक, अगर ऐसी ही जिंदगी एक हजार वर्ष आपको जीनी पड़े, एक लाख वर्ष आपको जीनी पड़े, एक करोड़ वर्ष जीनी पड़े तो क्या होगा? क्या आप घबड़ा न जाएंगे, ऊब न जायेंगे, संताप से न भर जायेंगे? इसको थोड़ा बड़ा करें, कुछ चीजें थोड़ी बड़ी करने से ही समझ में आती हैं। बहुत छोटी होती हैं तो आंख से बच जाती हैं।


हमारी आंख बहुत गहरा नहीं देखती। थोड़ी अपनी जिदंगी को लंबा करें, और लंबा करके आपको दिखाई पड़ेगा कि जो भी आप कर रहे हैं, वह सभी ऊबा देगा, घबड़ा देगा, परेशान कर देगा। लेकिन अगर कोई चीज हजार वर्ष में ऊबा देगी तो क्या सौ वर्षों में अर्थपूर्ण हो सकती है? और जो चीज सौ वर्ष में ऊबा देगी तो क्या एक दिन में अर्थपूर्ण हो सकती है? जो हजार वर्ष में ऊबाने वाली हो जाएगी, वह सौ वर्ष में भी ऊबाने वाली है, वह एक दिन में भी ऊबाने वाली है। वह एक क्षण में भी ऊबाने वाली है, यह दूसरी बात है कि हमें दिखाई न पड़ती हो। आंख हमारी ठीक से उस अणु को न देख पाती हो। इसलिए मैंने यह कहानी कही।


उस राजा को घबड़ाहट हो गई, अमरता लेने को राजी न हुआ। चिरयुवा होने को राजी न हुआ। क्यों? क्योंकि जिसे हम जिदंगी जानते हैं, अगर वही जिंदगी है और हमेशा के लिए हमें दे दी जाए तो इससे बड़ा कोई कष्ट, इससे बड़ा कोई नरक संभव नहीं है। निश्चित ही वह जिंदगी नहीं है, अगर कोई आए और आपको कहे कि जो आपकी जिदंगी है, जो भी आपकी जिंदगी है, हम सदा के लिए, अनंतकाल को आपको दिए देते हैं, क्या आपके प्राण थरथरा नहीं जाएंगे, घबड़ा नहीं जाएंगे? और अगर अनंतकाल तक इसी को भोगने से प्राण घबड़ा जाएंगे, तो जो विचारशील है, वह आज ही घबड़ा जाएगा। जिसके पास आंख है, वह आज ही सजग हो जाएगा। क्योंकि जो बड़ा होकर व्यर्थ है वह छोटा होकर भी व्यर्थ है। और अगर व्यर्थता नहीं दिखाई पड़ती तो हमारी आंख की कमी है, हमारे पास आंख का न होना है।


यह जीवन व्यर्थ है, जिसे हम जीवन जानते हैं। यह जीवन इतना व्यर्थ है, इतना पीड़ा और इतने दुख से भरा है इसीलिए कि हम उस जीवन को नहीं जानते, जो कि वास्तविक जीवन है। हम करीब-करीब छायाओं में जीवन को बिता देते हैं। कल मैंने आपसे कहा, अपने बाहर के जगत में जो जीवन को व्यतीत कर देता है, वह वास्तविक जीवन से वंचित रह जाता है। वास्तविक जीवन की दिशा कहीं भीतर है। कहीं प्राणों की उस आत्यंतिक अवस्था में केंद्र पर। हम सबके भीतर कोई केंद्र है या नहीं, हम सबके भीतर कोई सेंटर है या नहीं। या कि हम केवल परिधि हैं? कोई परिधि ऐसी नहीं होती, जिसका कोई केंद्र न हो, कोई बीच का बिंदु न हो। लेकिन जिसे हम जीवन जानते हैं, वह परिधि का जीवन है, प्राण का, कमाई का, भाग-दौड़ का, यश का, प्रतिष्ठा का, धन का, पदों का ; यह सारा परिधि का जीवन है, लेकिन केंद्र कहां है? केंद्र हमारी सत्ता है, और परिधि रोज बदल जाती है, आज नहीं कल विलीन हो जाएगी, एक क्षण टूट जाएगी, लेकिन केंद्र जो निरंतर हमारे भीतर है, हमारे साथ है। वह मैंने कल आपसे कहा। प्रत्येक व्यक्ति निरंतर किसी एक सत्ता के साथ है, उस सत्ता को जानना, उस सत्ता से परिचित होना, उस सत्ता के भीतर प्रवेश किए बिना, कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन को उपलब्ध नहीं होता। उसके अभाव में हम करीब-करीब मुर्दे हैं। उसके अभाव में हम करीब-करीब मरे हुए लोग हैं। हम नाममात्र को जीवित हैं। यह जीवन कोई जीवन नहीं है, यह कोई जीवन की स्थिति नहीं है। मैं हूं, पहले तो इस बोध को लेना जरूरी है, इस पर मैंने कल आपसे बात की। मैं कौन हूं, इसमें प्रवेश करना जरूरी है, इस पर मैं आपसे आज बात करूंगा।

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