Osho - Hindi Books Series :B - C

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  • Bahuri Na Aisa

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जीवन ही खतरनाक है। मृत्यु सुविधापूर्ण हैं। मृत्यु ज्यादा और आरामदायक कुछ भी नहीं। इसलिए लोग मृत्यु को वरण करते हैंजीवन का निषेध।। लोग ऐसे जीते हैं,जिसमें कम से कम जीना पड़ेन्यूनतम--क्योंकि जितने कम जीएंगे उतना कम खतरा हैजितने ज्यादा जीएंगे उतना ज्यादा खतरा है। जितनी त्वरा होगी जीवन में उतनी ही आग होगीउतनी ही तलवार में धार। जीवन को गहनता से जीनासमग्रता से जीना--पहाड़ों की ऊंचाइयों पर चलना है। ऊंचाइयों से कोई गिर सकता है। जो गिरने से डरते हैंवे समतल भूमि पर सरकते हैं;चलते भी नहीं घिसटते हैं। उड़ने की तो बात दूर।
और सदगुरु के पास होना तो सूर्य की ओर उड़ान है।
शिष्य तो ऐसे है जैसे सूर्यमुखी का फूलजिस तरह सूरज घूमताउस तरह शिष्य घूम जाता। सूर्य पर उसकी श्रद्धा अखंड है। सूर्य ही उसका जीवन है। सूर्य नहीं तो वह नहीं। जैसे ही सूरज डूबासूर्यमुखी का फूल बंद हो जाता है। जैसे ही सूरज ऊगासूर्यमुखी खिलाआह्लादित हुआनाचा हवाओं मेंमस्त हुआपी धूप। उसके जीवन में तत्क्षण नृत्य आ जाता है। 
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  • Bhakti Sutra

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भक्ति यानी प्रेम- ऊर्ध्‍वमुखी प्रेम। भक्ति यानी दो व्‍यक्तियों के बीच का प्रेम नहीं, व्‍यक्ति और समष्टि के बीच का प्रेम। भक्ति यानी सर्व के साथ प्रेम में गिर जाना। भक्ति यानी सर्व को आलिंगन करने की चेष्‍टा। और, भक्ति यानी सर्व को आमंत्रण कि मुझे आलिंगन कर ले।
भक्ति कोई शास्‍त्र नहीं है- यात्रा है। भक्ति कोई सिद्धांत नहीं है-जीवन-रस है। भक्ति को समझ्‍ कर कोई समझ पाया नही। भक्ति में उूब कर ही कोई भक्ति के राज को समय पाता है।
प्रस्‍तुत पुस्‍तक ‘भक्ति सूत्र’ में ओशो द्वारा नारद-वाणी पर प्रश्‍नोत्‍तर सहित दिए गए 20 अमृत प्रवचनो। को संकलित किया गया है।
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  • Bharat Ka Bhavishya

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जवान आदमी भविष्य की तरफ देखता है। और जो कौम भविष्य की तरफ देखती है वह जवान होती है। जो अतीत की तरफ, पीछे की तरफ देखती है, वह बूढ़ी हो जाती है। यह हमारा मुल्क सैकड़ों वर्षों से पीछे की तरफ देखने का आदी रहा है। हम सदा ही पीछे की तरफ देखते हैं; जैसे भविष्य है ही नहीं, जैसे कल होने वाला नहीं है। जो बीत गया कल है वही सब-कुछ है। यह जो हमारी दृष्टि है यह हमें बूढ़ा बना देती है।
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  • Bharat Ki Khoj

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भारत की प्रतिभा पुराने समाधानों को पकड़ कर ठहर गई है। और इतनी हैरानी मालूम होती है कि पता नहीं कब ठहर गई है, कितने हजार वर्ष पहले, यह भी कहना मुश्किल है? ऐसा ही लगता है कि ज्ञात इतिहास, जब से हम जानते हैं इतिहास को, तब से भारत ठहरा ही हुआ है।
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  • Bin Ghan Parat Purat

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‘बिन धन परत फुहार’—यह वार्तामाला एक नई ही यात्रा होगी। मैं अब तम मुक्तपुरुषों पर बोला हूं। पहली बार एक मुक्तनारी पर चर्चा शुरू करता हूं। मुक्तपुरुषों पर बोलना आसान था। उन्हें मैं समझ सकता हूं—वे सजातीय हैं। मुक्तनारी पर बोलना थोड़ा कठिन होगा—वह थोड़ा अजनबी रास्ता है। ऐसे तो पुरुष और नारी अंतरतम में एक हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्तियां बड़ी भिन्न-भिन्न हैं। उनके होने का ढंग, उनके दिखाई पड़ने की व्यवस्था, उनका वक्तव्य, उनके सोचने की प्रक्रिया, न केवल भिन्न है बल्कि विपरीत है। अब तक किसी मुक्तनारी पर नहीं बोला। तुम थोड़ा मुक्तपुरुषों को समझ लो, तुम थोड़ा मुक्ति का स्वाद चख लो, तो शायद मुक्तनारी को समझना भी आसान हो जाए।’-ओशो
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  • Birhini Mandir

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सदियों-सदियों से देह के साथ दो अतियां जुड़ी हुई हैं—तिरस्कार या भोग। कभी तो हमने इसे वीरान श्‍मशान ही बना दिया है तपश्‍चर्या के नाम पर अत्‍याचार करके, या फिर इसे वेश्‍या बना कर छोड़ दिया है, जैसे कि यह अपनी नहीं, किसी की भी न हो। रहस्‍यदर्शियों ने इसी देह को कभी मंदिर के रूप में देखा है तो कभी अस्‍तित्‍व की सर्वश्रेष्‍ठ कृति के रूप में। यारी उसी शृंखला की एक कड़ी हैं जो इस देह-मंदिर में दीया जलाने की बात करते हैं। पुस्‍तक का शीर्षक व प्रारंभिक पंक्‍तियां हैं—‘बिरहिनी मंदिर दियना बार’ अर्थात ‘ऐ बिरही लोगो! अपने घर में आत्‍म-ज्‍योति जलाओ’।
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  • Bahutere Hai Ghat

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अज्ञात के स्वर जिन्हें सुनाई दें; उनके लिए यह प्रश्नोत्तर माला अदभुत रूप से मार्गदर्शक हो सकती है। अज्ञात के निमंत्रण पर जिस मार्ग पर चलना है; उसके विषय में ओशो कहते हैं : ‘‘एक ही कदम में यात्रा पूरी हो सकती है; बस साहस की बात है। एक क्षण में निर्वाण का अमृत तुम पर बरस सकता है, बस प्रेम से भरी छाती चाहिए।’’
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  • Chal Hansa

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