Maitri - Osho

मैत्री - ओशो

मित्रता संबंध है। तुम कुछ लोगों के साथ संबंध बना सकते हो। मैत्री गुणवत्ता है न कि संबंध। इसका किसी दूसरे से कुछ लेना-देना नहीं है; मौलिक रूप से यह तुम्हारी आंतरिक योग्यता है। जब तुम अकेले हो तब भी तुम मैत्रीपूर्ण हो सकते हो। जब तुम अकेले हो तब तुम संबंध नहीं बना सकते--दूसरे की जरूरत होती है--पर मैत्री एक तरह की खुशबू है। जंगल में फूल खिलता है; कोई भी नहीं गुजरता--तब भी वह खुशबू बिखेरता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई जानता है या नहीं, यह उसका गुण है। हो सकता है कि कभी किसी को पता नहीं चलेगा, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। फूल आनंदित हो रहा है।
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संबंध एक मनुष्य और दूसरे मनुष्य के बीच ही बन सकता है या अधिक से अधिक मनुष्य और जानवर के साथ--घोड़ा, कुत्ता। लेकिन मैत्री चट्टान के साथ, नदी के साथ, पहाड़ के साथ, बादल के साथ, दूर के तारों के साथ भी हो सकती है। मैत्री असीम है क्योंकि यह दूसरों पर निर्भर नहीं है, यह पूरी तरह से आपकी अपनी खिलावट है।
इसलिए, मैत्री बनाओ, बस मैत्री सारे अस्तित्व के साथ। और उस मैत्री में तुम वह सब पा लोगे जो पाने योग्य है। मैत्री में तुम आत्यंतिक मित्र पा लोगे।
Osho, Going All the Way, Talk #11

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